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बन्‍द करो धर्म का धन्‍धा

anubhav
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भारत में श्रद्धा और भक्ति की अनन्‍त कथाएं हैं। इनमें से कुछ हमें प्रेरणा देती हैं तो कुछ चिन्‍तन का नया आधार प्रदान करती है। धर्म और समाज के अन्‍तर्सम्‍बन्‍धों को स्‍पष्‍ट और सारगर्भित रूप में समझने की सीख भी हमें यहीं से प्राप्‍त होती है। लेकिन हाल के दिनों में आस्‍था और श्रद्धा के साथ जिस तरह खिलवाड करने की घटनाएं प्रकाश में आयी हैं निश्चित रूप से वह धर्म और समाज के अन्‍तर्सबन्‍धों को अपरिहार्य मानने वालों के लिए चिन्‍ता का विषय है। धर्म व्‍यक्ति की निजी स्‍वीकारोक्ति की सम्‍पदा ही नहीं होता बल्कि इसके जरिए वह जो कुछ ग्रहण करता है उसे समूचे समाज में बिखेरता है। इसलिए भी आज जरूरी हो गया है कि हम धर्म, श्रद्धा और भक्ति के नाम पर जनता के विश्‍वास के साथ खेलने वालों के खिलाफ खडे हों और सरकारों एवं प्रशासन को भी इसके लिए बाध्‍य करें। पर, इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम उन कारणों को जानें जो पाखण्डियों को हमारी आस्‍था से खिलवाड करने की छूट देते हैं। कुछ लोग दलील देंगे कि जबसे धर्म और समाज बना तभी से यदा कदा ऐसे पाखण्‍डी भी पैदा होते रहे हैं लेकिन हमारी आस्‍था और हमारे मनोबल पर कोई असर नहीं पडा है। मेरे विचार से ऐसी दलीलें धर्म और समाज की व्‍यवस्‍था को कदापि मजबूत नहीं करते। क्‍या कारण है कि बार बार पाखण्‍डी हमारी आस्‍था के नियंत्रक एवं दिशा निर्देशक बन जाते हैं और इसका ज्ञान हमें तब होता है जब हम पूरी तरह लुट चुके होते हैं। आइए, हाल ही में हुए कुछ वाकए पर नजर डालें-
1-शिवमूर्ति दिवेदी उर्फ ढोंगी बाबा ने श्रद्धा की आड में शुरू कर दिया देह व्‍यापार का धन्‍धा
2-नित्‍यानन्‍द स्‍वामी ने बिछाया फर्जीवाडा का जाल, शिष्‍याओं के साथ करता रहा दुष्‍कर्म
3-खुद को भगवान कहलाने वाले राजस्‍थान के एक ढोंगी ने नोट दोगुना करने का लालच देकर हडप लिए जनता के लाखों के रुपए व जेवरात
4-सन्‍त के रूप में खूबसूरस शिष्‍याओं की कतार सजाने वाले एक ढोंगी ने गोपालगंज के जिलाधिकारी की हत्‍या करायी, अपने कई और विरोधियों का कत्‍ल करा दिया। बाद में उसकी भी हत्‍या एक विधायक ने गुर्गों का गोल बनाकर करा दी
5-मध्‍य प्रदेश और उत्‍तर प्रदेश के कई इलाकों में भभूत फूंकने वाले बाबाओं ने बच्‍चों और महिलाओं के ऊपर लगाई दौड
ये घटनाएं तो कुछ बानगी भर है। इससे भी बडी घटनाएं अक्‍सर हमारे देश में होती रहती हैं। कभी कोई सन्‍त के नाम पर भोली भाली जनता को लूटता है तो कभी मुल्‍ला मौलवी बनकर। ऐसी घटनाएं हमारी आस्‍था को गहरे चोट पहुंचाती हैं। इन घटनाओं की तह में जाने पर पता चलता है कि धर्म का पाखण्‍ड रचने वाले चेहरे इसलिए भी फले फूले क्‍योंकि उन्‍हें स्‍थानीय प्रशासन का नतमस्‍तक समर्पण हासिल था। सरकार के नियंता जनप्रतिनिधि भी इस अंधश्रद्धा की दौड में शामिल थे। जिन जिन लोगों पर जनता को जागरूक करने और व्‍यवस्‍था देने की जिम्‍मेदारी थी वे भी भीड का हिस्‍सा बन गए थे, जिसका फायदा धर्म का धन्‍धा चलाने वालों ने उठाया। और जब पर्दा उठा तो सभी बेनकाब हो चुके थे।
आइए, आस्‍था और धर्म के धन्‍धे के दूसरे पहलू को भी देखें-
1-आशाराम बापू के स्‍कूल में मासूमों की लाश मिली, उनके आश्रम में सवाल करने वालों से मारपीट की गयी। मुकदमें बाजी हुई। सरकार और प्रशासन के साथ उनकी तू तू मै मै हुई। बापू के ऊपर कई अफसरों और अपने पूर्व सहयोगियों को धमकी देने के संगीन आरोप लगे।
2-अयोध्‍या में वर्चस्‍व को लेकर महन्‍तों के अखाडों में जोर जबर्दस्‍ती हुई, मारपीट की गयी, मुकदमेंबाजी हुई।
3-कृपालु जी महराज के ऊपर एक विदेश युवती के साथ दुराचार का आरोप लगा, उनकी गिरफ़तारी हुई, बाद में रिहाई हुई। हालांकि उन्‍होंने आरोपों को अपनी उम्र का हवाला देते हुए किसी गहरी साजिश का हिस्‍सा बताया था।
4-साडी-कपडे, बर्तन और खादयान्‍न बांटने के नाम पर देश के विभिन्‍न प्रदेशों में संतों-महन्‍तों ने भारी भीड जुटाई और हादसे को आमंत्रण दिया। इसमें दया और परोपकार से अधिक प्रसिद्धि बटोरने की चाल अधिक रही।
5-कृपालु जी महराज के मनगढ स्थित आश्रम में सुरक्षा व्‍यवस्‍था की परवाह किए बगैर थाली-गिलास और रोटी बांटने के नाम पर भारी भीड जुटाई गयी। आश्रम के मेन गेट पर इतनी भीड जमा हो गयी कि दबाव में दरवाजा टूटकर गिर गया और भगदड में 71 लोगों की जान चली गयी।
हममे से बहुतों को याद होगा कि मनगढ आश्रम जैसे हादसे बिलासपुर, लखनऊ, हरिदवार, इलाहाबाद आदि स्‍थानों पर हो चुके हैं और उसमें सैकडों लोगों की जानें जा चुकी हैं। सभी घटनाओं की पडताल करने पर हम इस निष्‍कर्ष पर पहुंचते हैं कि हर जगह गरीबी के कारण ही लोग रोटी-कपडे के लालच में ऐसे जलसों में खिंचते गये। जहां तक मैं समझता हूं धर्म और जनकल्‍याण के लिए किसी भी संत-महंत या संगठन को भीड जुटाना जरूरी नहीं है। भीड तो केवल भौकाल बनाने के लिए जुटायी जाती है ताकि धर्म का धन्‍धा तेजी से चलता रहे।
यह गौर करने वाली बात है कि शिवमूर्ति दिवेदी से लेकर नित्‍यानन्‍द स्‍वामी तक की करतूतें एक दिन में ही नहीं फली फूलीं। वे कालगर्लों का रैकेट चलाते थे तो उनके खरीददार भी इसी समाज के थे, जिसका संरक्षण इन ढोंगियों को हासिल था। क्‍या कारण है कि वर्षों से बडे पैमाने पर सेक्‍स रैकेट चलाने वाला बाबा पुलिस और प्रशासन की नजरों से बचा रहा। इसके पीछे निश्चित रूप से कई गहरे राज रहे होंगे।
इस बीच एक खबर आयी है कि हरिद़वार में सन्‍तों की एक मण्‍डली ने एक समिति बनाने का एलान किया है जो देश भर के सन्‍तों-महन्‍तों के आचरण पर नजर रखेगी। इसका फोकस यह है कि इसमें स्‍वामी रामदेव जी भी होंगे। इस देश में समिति बनाने का सबको हक है लेकिन इस तरह की समितियों का एलान भी महज समय को अपने हाथों में थामने की कोशिश प्रतीत होता है। सवाल लाजिमी है-जिस सरकार और प्रशासन के पास खूफिया तंत्र हो और त्‍वरित कार्रवाई के सारे अधिकार हों वह चुप्‍पी साधे है और जो लोग महज नैतिकता के नाम पर संगठन बनाकर बडे चारित्रिक परिवर्तन का नारा बुलन्‍द कर रहे हैं उनपर भरोसा किया जाए यह कितना उचित होगा। आखिर वे भी तो धर्म, समाज और जनकल्‍याण की इसी भीड जुटाऊ परम्‍परा से जुडे लोग हैं। समय की मांग है कि सरकार स्‍वयं पहल करे और ऐसी व्‍यवस्‍था बनाए जिससे धर्म को धन्‍धा बनाने वालों को रोका-टोका जा सके। उनकी निरन्‍तर निगरानी की जा सके। उनके आय-व्‍यय एवं उत्‍थान पतन का रिकार्ड जुटाया जा सके। यदि हम अब भी नहीं जागे तो एक दो नहीं बल्कि दर्जनों और सैकडों की संख्‍या में शिवमूर्ति दिवेदी उर्फ ढोंगी बाबा और नित्‍यानन्‍द जैसे ढोंगी पैदा होते रहेंगे और गरीबी की मारी जनता यूं ही अन्‍धविश्‍वासों के नाम पर छली जाती रहेगी, भगदड में मरती रहेगी। हादसे होते रहेंगे।

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